श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 65: लक्ष्मण का श्रीराम को समझा-बुझाकर शान्त करना  »  श्लोक 16
 
 
श्लोक  3.65.16 
 
 
शीलेन साम्ना विनयेन सीतां
नयेन न प्राप्स्यसि चेन्नरेन्द्र।
तत: समुत्सादय हेमपुङ्खै-
र्महेन्द्रवज्रप्रतिमै: शरौघै:॥ १६॥
 
 
अनुवाद
 
  यदि नेक नीति, राजनीति, विनय और न्याय के अनुसार प्रयास करने के बाद भी सीता का पता नहीं चल पाता, तो हे नरेंद्र! आप स्वर्णिम पंखों वाले इंद्र के वज्र के समान तीरों से समस्त लोकों का नाश कर डालें।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽरण्यकाण्डे पञ्चषष्टितम: सर्ग: ॥ ६ ५॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अरण्यकाण्डमें पैंसठवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ ६ ५॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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