श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 65: लक्ष्मण का श्रीराम को समझा-बुझाकर शान्त करना  »  श्लोक 11-12h
 
 
श्लोक  3.65.11-12h 
 
 
को नु दारप्रणाशं ते साधु मन्येत राघव।
सरित: सागरा: शैला देवगन्धर्वदानवा:॥ ११॥
नालं ते विप्रियं कर्तुं दीक्षितस्येव साधव:।
 
 
अनुवाद
 
  रघुनंदन! आपकी पत्नी के विनाश या अपहरण को कौन अच्छा समझेगा? जैसे यज्ञ में दीक्षित पुरुष का साधु प्रकृति वाला पुरोहित कभी अप्रिय नहीं कर सकता है, वैसे ही नदियाँ, समुद्र, पर्वत, देवता, गंधर्व और असुर-ये कोई भी आपके विरुद्ध आचरण नहीं कर सकते।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.