श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 64: श्रीराम और लक्ष्मण के द्वारा सीता की खोज, आभूषणों के कण और युद्ध के चिह्न देखकर श्रीराम का देवता आदि सहित समस्त त्रिलोकी पर रोष प्रकट करना  »  श्लोक 74-75
 
 
श्लोक  3.64.74-75 
 
 
लक्ष्मणादथ चादाय रामो निष्पीडॺ कार्मुकम्।
शरमादाय संदीप्तं घोरमाशीविषोपमम्॥ ७४॥
संदधे धनुषि श्रीमान् राम: परपुरञ्जय:।
युगान्ताग्निरिव क्रुद्ध इदं वचनमब्रवीत्॥ ७५॥
 
 
अनुवाद
 
  उस समय श्रीरामचंद्रजी ने दृढ़ता से लक्ष्मण के हाथ से धनुष ले लिया और विशाक्त साँप के समान भयानक और प्रज्वलित बाण को धनुष पर चढ़ाया। उसके बाद शत्रुओं की नगरी पर विजय पाने वाले श्रीराम प्रलय की अग्नि के समान क्रोधित होकर इस प्रकार बोले-।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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