श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 64: श्रीराम और लक्ष्मण के द्वारा सीता की खोज, आभूषणों के कण और युद्ध के चिह्न देखकर श्रीराम का देवता आदि सहित समस्त त्रिलोकी पर रोष प्रकट करना  »  श्लोक 72
 
 
श्लोक  3.64.72 
 
 
इत्युक्त्वा क्रोधताम्राक्ष: स्फुरमाणोष्ठसम्पुट:।
वल्कलाजिनमाबद्धॺ जटाभारमबन्धयत्॥ ७२॥
 
 
अनुवाद
 
  श्री रामचंद्रजी ने ऐसा कहकर क्रोध के कारण लाल आँखों से देखा, उनके होंठ फड़कने लगे। उन्होंने वल्कल और हिरण के चमड़े को कसकर बाँधा और अपने जटाभार को भी बांध लिया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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