श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 64: श्रीराम और लक्ष्मण के द्वारा सीता की खोज, आभूषणों के कण और युद्ध के चिह्न देखकर श्रीराम का देवता आदि सहित समस्त त्रिलोकी पर रोष प्रकट करना  »  श्लोक 63-64h
 
 
श्लोक  3.64.63-64h 
 
 
नाकाशमुत्पतिष्यन्ति सर्वभूतानि लक्ष्मण॥ ६३॥
मम चापगुणोन्मुक्तैर्बाणजालैर्निरन्तरम्।
 
 
अनुवाद
 
  लक्ष्मण! मेरे धनुष से छोड़े गए बाणों की ऐसी अटूट शृंखला आकाश में फैल जाएगी कि कोई भी प्राणी उसमें उड़ नहीं सकेगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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