श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 64: श्रीराम और लक्ष्मण के द्वारा सीता की खोज, आभूषणों के कण और युद्ध के चिह्न देखकर श्रीराम का देवता आदि सहित समस्त त्रिलोकी पर रोष प्रकट करना  »  श्लोक 56-57
 
 
श्लोक  3.64.56-57 
 
 
मां प्राप्य हि गुणो दोष: संवृत्त: पश्य लक्ष्मण।
अद्यैव सर्वभूतानां रक्षसामभवाय च॥ ५६॥
संहृत्यैव शशिज्योत्स्नां महान् सूर्य इवोदित:।
संहृत्यैव गुणान् सर्वान् मम तेज: प्रकाशते॥ ५७॥
 
 
अनुवाद
 
  देखो लक्ष्मण, मेरी दयालुता आदि गुण मेरे लिए दोष बन गए हैं, जिसके कारण रावण ने मुझे निर्बल समझकर सीता का अपहरण कर लिया है। अब मुझे पुरुषार्थ दिखाना ही होगा। जैसे प्रलयकाल में उदित हुआ महान सूर्य चंद्रमा की चांदनी को समाप्त करके प्रचंड तेज से प्रकाशित हो उठता है, उसी प्रकार अब मेरा तेज भी आज ही समस्त प्राणियों और राक्षसों का अंत करने के लिए मेरे उन कोमल स्वभाव आदि गुणों को समेटकर प्रचंड रूप में प्रकाशित होगा, यह भी तुम देखो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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