श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 64: श्रीराम और लक्ष्मण के द्वारा सीता की खोज, आभूषणों के कण और युद्ध के चिह्न देखकर श्रीराम का देवता आदि सहित समस्त त्रिलोकी पर रोष प्रकट करना  »  श्लोक 52
 
 
श्लोक  3.64.52 
 
 
हृता मृता वा वैदेही भक्षिता वा तपस्विनी।
न धर्मस्त्रायते सीतां ह्रियमाणां महावने॥ ५२॥
 
 
अनुवाद
 
  निश्चय ही वन में तप करने वाली विदेहराज की कुमारी सीता को कोई हर ले गया है, मृत्यु ने उन्हें आ गले लगाया है अथवा राक्षसों ने उन्हें खा लिया है। इस विशाल वन में हरती हुई सीता की रक्षा धर्म भी नहीं कर रहा है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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