श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 64: श्रीराम और लक्ष्मण के द्वारा सीता की खोज, आभूषणों के कण और युद्ध के चिह्न देखकर श्रीराम का देवता आदि सहित समस्त त्रिलोकी पर रोष प्रकट करना  »  श्लोक 45-46h
 
 
श्लोक  3.64.45-46h 
 
 
विशीर्णं पतितं भूमौ कवचं कस्य काञ्चनम्।
छत्रं शतशलाकं च दिव्यमाल्योपशोभितम्॥ ४५॥
भग्नदण्डमिदं सौम्य भूमौ कस्य निपातितम्।
 
 
अनुवाद
 
  सोम्य! धरती पर गिरा हुआ यह सोने का टूटा हुआ कवच किसका है? यह किसका शत-कमानियों वाला छत्र है जो दिव्य मालाओं से सुशोभित है? इसका डंडा टूट गया और यह भूमि पर गिर गया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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