श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 64: श्रीराम और लक्ष्मण के द्वारा सीता की खोज, आभूषणों के कण और युद्ध के चिह्न देखकर श्रीराम का देवता आदि सहित समस्त त्रिलोकी पर रोष प्रकट करना  »  श्लोक 44
 
 
श्लोक  3.64.44 
 
 
राक्षसानामिदं वत्स सुराणामथवापि वा।
तरुणादित्यसंकाशं वैदूर्यगुलिकाचितम्॥ ४४॥
 
 
अनुवाद
 
  वत्स! यह जो चमक रहा है, यह राक्षस का है या देवता का, यह तो मुझे पता नहीं है। यह तो प्रातःकाल के सूर्य के समान है जिसमें वैदूर्य मणि के टुकड़े जड़े हुए हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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