श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 64: श्रीराम और लक्ष्मण के द्वारा सीता की खोज, आभूषणों के कण और युद्ध के चिह्न देखकर श्रीराम का देवता आदि सहित समस्त त्रिलोकी पर रोष प्रकट करना  »  श्लोक 41
 
 
श्लोक  3.64.41 
 
 
मन्ये लक्ष्मण वैदेही राक्षसै: कामरूपिभि:।
भित्त्वा भित्त्वा विभक्ता वा भक्षिता वा भविष्यति॥ ४१॥
 
 
अनुवाद
 
  लक्ष्मण! मुझे ऐसा लगता है कि इच्छानुसार रूप धारण करने वाले राक्षसों ने सीता को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़कर आपस में बाँटकर खा लिया होगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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