स समीक्ष्य परिक्रान्तं सीताया राक्षसस्य च॥ ३७॥
भग्नं धनुश्च तूणी च विकीर्णं बहुधा रथम्।
सम्भ्रान्तहृदयो राम: शशंस भ्रातरं प्रियम्॥ ३८॥
अनुवाद
सीता और राक्षस के पैरों के निशान देखकर तथा टूटे धनुष, तरकस और टुकड़े-टुकड़े होकर बिखरे हुए रथ को देखकर श्रीरामचंद्र जी का हृदय घबरा गया। उन्होंने अपने प्रिय भाई सुमित्रा कुमार से कहा, "देखो भाई, सीता और राक्षस के पैरों के निशान, टूटा हुआ धनुष, तरकस और बिखरा हुआ रथ। इससे प्रतीत होता है कि यहाँ कोई भयंकर युद्ध हुआ है।"