श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 64: श्रीराम और लक्ष्मण के द्वारा सीता की खोज, आभूषणों के कण और युद्ध के चिह्न देखकर श्रीराम का देवता आदि सहित समस्त त्रिलोकी पर रोष प्रकट करना  »  श्लोक 37-38
 
 
श्लोक  3.64.37-38 
 
 
स समीक्ष्य परिक्रान्तं सीताया राक्षसस्य च॥ ३७॥
भग्नं धनुश्च तूणी च विकीर्णं बहुधा रथम्।
सम्भ्रान्तहृदयो राम: शशंस भ्रातरं प्रियम्॥ ३८॥
 
 
अनुवाद
 
  सीता और राक्षस के पैरों के निशान देखकर तथा टूटे धनुष, तरकस और टुकड़े-टुकड़े होकर बिखरे हुए रथ को देखकर श्रीरामचंद्र जी का हृदय घबरा गया। उन्होंने अपने प्रिय भाई सुमित्रा कुमार से कहा, "देखो भाई, सीता और राक्षस के पैरों के निशान, टूटा हुआ धनुष, तरकस और बिखरा हुआ रथ। इससे प्रतीत होता है कि यहाँ कोई भयंकर युद्ध हुआ है।"
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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