श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 64: श्रीराम और लक्ष्मण के द्वारा सीता की खोज, आभूषणों के कण और युद्ध के चिह्न देखकर श्रीराम का देवता आदि सहित समस्त त्रिलोकी पर रोष प्रकट करना  »  श्लोक 33-34h
 
 
श्लोक  3.64.33-34h 
 
 
ततो दाशरथी राम उवाच च शिलोच्चयम्।
मम बाणाग्निनिर्दग्धो भस्मीभूतो भविष्यसि॥ ३३॥
असेव्य: सर्वतश्चैव निस्तृणद्रुमपल्लव:।
 
 
अनुवाद
 
  तब राम ने उस पर्वत से कहा - "हे पर्वत! तुम मेरे बाणों की आग से जलकर भस्म हो जाओगे। तुम किसी भी तरह से उपयोगी नहीं रहोगे। तुम्हारे पेड़-पौधे और पत्तियां नष्ट हो जाएंगी।"
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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