श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 64: श्रीराम और लक्ष्मण के द्वारा सीता की खोज, आभूषणों के कण और युद्ध के चिह्न देखकर श्रीराम का देवता आदि सहित समस्त त्रिलोकी पर रोष प्रकट करना  »  श्लोक 32
 
 
श्लोक  3.64.32 
 
 
एवमुक्तस्तु रामेण पर्वतो मैथिलीं प्रति।
दर्शयन्निव तां सीतां नादर्शयत राघवे॥ ३२॥
 
 
अनुवाद
 
  श्रीराम के द्वारा जब मैथिली (सीता) के लिए ऐसा कहा गया तो उस पर्वत ने जैसे सीता को दिखाता हुआ कुछ चिह्न प्रकट किया। परंतु, श्रीरघुनाथजी (राम) के पास वह सीता को साक्षात् उपस्थित नहीं कर सका।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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