श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 64: श्रीराम और लक्ष्मण के द्वारा सीता की खोज, आभूषणों के कण और युद्ध के चिह्न देखकर श्रीराम का देवता आदि सहित समस्त त्रिलोकी पर रोष प्रकट करना  »  श्लोक 30-31
 
 
श्लोक  3.64.30-31 
 
 
क्रुद्धोऽब्रवीद् गिरिं तत्र सिंह: क्षुद्रमृगं यथा॥ ३०॥
तां हेमवर्णां हेमाङ्गीं सीतां दर्शय पर्वत।
यावत् सानूनि सर्वाणि न ते विध्वंसयाम्यहम्॥ ३१॥
 
 
अनुवाद
 
  तदनन्तर सिंह ने उस पर्वत से क्रोधित होकर कहा, "हे पर्वत! जैसे सिंह छोटे मृग को देखकर दहाड़ता है, उसी प्रकार मैं तुम्हारे सारे शिखरों का विध्वंस कर दूँगा, इससे पहले ही तुम मुझे हेमवर्णां और हेमांगी सीता के दर्शन करा दो।"
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.