उवाच लक्ष्मणो धीमान् ज्येष्ठं भ्रातरमार्तवत्।
क्व सीतेति त्वया पृष्टा यथेमे सहसोत्थिता:॥ २१॥
दर्शयन्ति क्षितिं चैव दक्षिणां च दिशं मृगा:।
साधु गच्छावहे देव दिशमेतां च नैर्ऋतीम्॥ २२॥
यदि तस्यागम: कश्चिदार्या वा साथ लक्ष्यते।
अनुवाद
तब बुद्धिमान लक्ष्मण ने दुखी होकर अपने बड़े भाई से इस प्रकार कहा- "हे आर्य! जब आपने पूछा कि सीता कहाँ हैं, तब ये मृग एकाएक उठकर खड़े हो गए और पृथ्वी तथा दक्षिण दिशा की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करने लगे। इसलिए हे देव! यही उचित है कि हम इस नैऋत्य दिशा की ओर चलें। संभव है कि इस ओर जाने से सीता का कोई समाचार मिल जाए या आर्या सीता स्वयं ही दृष्टिगोचर हो जाएँ।"