श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 64: श्रीराम और लक्ष्मण के द्वारा सीता की खोज, आभूषणों के कण और युद्ध के चिह्न देखकर श्रीराम का देवता आदि सहित समस्त त्रिलोकी पर रोष प्रकट करना  »  श्लोक 16-18h
 
 
श्लोक  3.64.16-18h 
 
 
तांस्तु दृष्ट्वा नरव्याघ्रो राघव: प्रत्युवाच ह॥ १६॥
क्व सीतेति निरीक्षन् वै बाष्पसंरुद्धया गिरा।
एवमुक्ता नरेन्द्रेण ते मृगा: सहसोत्थिता:॥ १७॥
दक्षिणाभिमुखा: सर्वे दर्शयन्तो नभ:स्थलम्।
 
 
अनुवाद
 
  तब, सब ओर देखकर वीर पुरुषोत्तम श्रीराम ने उनसे पूछा - "बताओ, सीता कहाँ हैं?" राजा श्रीराम ने जब आँसुओं से भरे स्वर में मृगों की ओर देखते हुए यह पूछा, तो वे मृग तुरंत उठ खड़े हुए और ऊपर की ओर देखकर आकाश की ओर इशारा करते हुए सब-के-सब दक्षिण दिशा की ओर मुँह करके भागे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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