श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 63: श्रीराम का विलाप  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  3.63.7 
 
 
सा नूनमार्या मम राक्षसेन
ह्यभ्याहृता खं समुपेत्य भीरु:।
अपस्वरं सुस्वरविप्रलापा
भयेन विक्रन्दितवत्यभीक्ष्णम्॥ ७॥
 
 
अनुवाद
 
  हा! मेरी सदाचारी और सहमी हुई पत्नी सीता को निश्चित रूप से राक्षस आकाशमार्ग से उठा ले गया। उस समय मधुर स्वर में विलाप करती हुई सीता भय के कारण बार-बार ऊँची आवाज में रो रही होगी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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