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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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श्लोक 6
श्लोक
3.63.6
सर्वं तु दु:खं मम लक्ष्मणेदं
शान्तं शरीरे वनमेत्य क्लेशम्।
सीतावियोगात् पुनरप्युदीर्णं
काष्ठैरिवाग्नि: सहसोपदीप्त:॥ ६॥
अनुवाद
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लक्ष्मण! वन में आकर तमाम कष्ट सहने के बाद भी सीता के साथ रहने मात्र से वह सब दुख मेरे शरीर में ही शांत हो गया था, परन्तु सीता जी के वियोग से वह फिर से भड़क गया है, जैसे सूखी लकड़ी को आग लगने से वह अचानक जल उठती है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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