श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 63: श्रीराम का विलाप  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  3.63.12 
 
 
अस्मिन् मया सार्धमुदारशीला
शिलातले पूर्वमुपोपविष्टा।
कान्तस्मिता लक्ष्मण जातहासा
त्वामाह सीता बहुवाक्यजातम्॥ १२॥
 
 
अनुवाद
 
  लक्ष्मण! यह वही शिला है जिस पर सौम्य स्वभाव की सीता पहले एक दिन मेरे साथ बैठी हुई थी। उसकी मुस्कान कितनी सुंदर थी, उस समय उसने हँसते-हँसते तुमसे भी बहुत-सी बातें की थीं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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