श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 62: श्रीराम का विलाप  »  श्लोक 6-7h
 
 
श्लोक  3.62.6-7h 
 
 
विशेषेणाश्रमस्थाने हासोऽयं न प्रशस्यते।
अवगच्छामि ते शीलं परिहासप्रियं प्रिये॥ ६॥
आगच्छ त्वं विशालाक्षि शून्योऽयमुटजस्तव।
 
 
अनुवाद
 
  विशेषकर आश्रम में ये हँसी-मज़ाक ठीक नहीं माने जाते हैं। प्रिये! मैं जानता हूँ कि तुम्हें मज़ाक बहुत पसंद है। बड़ी आँखों वाली! आओ। तुम्हारी यह पर्णकुटी सूनी है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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