विशेषेणाश्रमस्थाने हासोऽयं न प्रशस्यते।
अवगच्छामि ते शीलं परिहासप्रियं प्रिये॥ ६॥
आगच्छ त्वं विशालाक्षि शून्योऽयमुटजस्तव।
अनुवाद
विशेषकर आश्रम में ये हँसी-मज़ाक ठीक नहीं माने जाते हैं। प्रिये! मैं जानता हूँ कि तुम्हें मज़ाक बहुत पसंद है। बड़ी आँखों वाली! आओ। तुम्हारी यह पर्णकुटी सूनी है।