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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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श्लोक 4
श्लोक
3.62.4
कदलीकाण्डसदृशौ कदल्या संवृतावुभौ।
ऊरू पश्यामि ते देवि नासि शक्ता निगूहितुम्॥ ४॥
अनुवाद
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देवी! मैं केले के तने जैसी और केले के पत्तों से ढकी हुई तुम्हारी दोनों जांघों को देख रहा हूं। तुम उन्हें छिपाओ या प्रकट करो, फिर भी मैं देख रहा हूं।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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