श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 62: श्रीराम का विलाप  »  श्लोक 20
 
 
श्लोक  3.62.20 
 
 
इति विलपति राघवे तु दीने
वनमुपगम्य तया विना सुकेश्या।
भयविकलमुखस्तु लक्ष्मणोऽपि
व्यथितमना भृशमातुरो बभूव॥ २०॥
 
 
अनुवाद
 
  श्री राम सुंदर केशों वाली सीता के वियोग में इस प्रकार वन में जाकर विलाप करने लगे तो लक्ष्मण के चेहरे पर भी भयजनित व्याकुलता के चिह्न दिखाई देने लगे। उनके मन को पीड़ा होने लगी और वे बहुत घबरा गये।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽरण्यकाण्डे द्विषष्टितम: सर्ग: ॥ ६ २॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अरण्यकाण्डमें बासठवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ ६ २॥
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.