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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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श्लोक 14-15h
श्लोक
3.62.14-15h
अथवा न गमिष्यामि पुरीं भरतपालिताम्॥ १४॥
स्वर्गोऽपि हि तया हीन: शून्य एव मतो मम।
अनुवाद
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अथवा अब मैं भरत द्वारा पालित अयोध्यापुरी नहीं जाऊँगा। जानकी के बिना मुझे स्वर्ग भी खाली ही प्रतीत होगा।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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