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श्लोक 3.61.31  |
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अनादृत्य तु तद् वाक्यं लक्ष्मणोष्ठपुटच्युतम्।
अपश्यंस्तां प्रियां सीतां प्राक्रोशत् स पुन: पुन:॥ ३१॥ |
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अनुवाद |
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लक्ष्मण के मुँह से निकली हुई इस बात का अनादर करके श्रीरामचन्द्रजी अपनी प्यारी पत्नी सीता को न देख पाने के कारण बार-बार पुकारने और विलाप करने लगे। |
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इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽरण्यकाण्डे एकषष्टितम: सर्ग:॥ ६१॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अरण्यकाण्डमें इकसठवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ ६१॥ |
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