दशरथ नंदन श्री राम ने देखा कि आश्रम के सभी स्थान सीता के बिना सूने हैं और पर्णशाला में भी सीता नहीं हैं, बैठने के आसन इधर-उधर फेंके पड़े हैं। तब उन्होंने फिर से आश्रम के सभी स्थानों का निरीक्षण किया। चारों ओर ढूंढने के बाद भी जब विदेह कुमारी का कहीं पता नहीं चला, तब श्री रामचंद्र जी ने अपनी दोनों सुंदर भुजाएँ ऊपर उठाईं और सीता का नाम लेकर जोर-जोर से पुकारते हुए लक्ष्मण से बोले-