श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 61: श्रीराम और लक्ष्मण के द्वारा सीता की खोज और उनके न मिलने से श्रीराम की व्याकुलता  »  श्लोक 1-2
 
 
श्लोक  3.61.1-2 
 
 
दृष्ट्वाऽऽश्रमपदं शून्यं रामो दशरथात्मज:।
रहितां पर्णशालां च प्रविद्धान्यासनानि च॥ १॥
अदृष्ट्वा तत्र वैदेहीं संनिरीक्ष्य च सर्वश:।
उवाच राम: प्राक्रुश्य प्रगृह्य रुचिरौ भुजौ॥ २॥
 
 
अनुवाद
 
  दशरथ नंदन श्री राम ने देखा कि आश्रम के सभी स्थान सीता के बिना सूने हैं और पर्णशाला में भी सीता नहीं हैं, बैठने के आसन इधर-उधर फेंके पड़े हैं। तब उन्होंने फिर से आश्रम के सभी स्थानों का निरीक्षण किया। चारों ओर ढूंढने के बाद भी जब विदेह कुमारी का कहीं पता नहीं चला, तब श्री रामचंद्र जी ने अपनी दोनों सुंदर भुजाएँ ऊपर उठाईं और सीता का नाम लेकर जोर-जोर से पुकारते हुए लक्ष्मण से बोले-
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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