श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 60: श्रीराम का विलाप करते हुए वृक्षों और पशुओं से सीता का पता पूछना, भ्रान्त होकर रोना और बारंबार उनकी खोज करना  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  3.60.7 
 
 
विप्रकीर्णाजिनकुशं विप्रविद्धबृसीकटम्।
दृष्ट्वा शून्योटजस्थानं विललाप पुन: पुन:॥ ७॥
 
 
अनुवाद
 
  सभी दिशाओं में मृगों की खालें और कुश बिखरी हुई थीं। चटाइयाँ अस्त-व्यस्त पड़ी हुई थीं। पर्णशाला को खाली देखकर भगवान श्रीराम बार-बार विलाप करने लगे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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