श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 60: श्रीराम का विलाप करते हुए वृक्षों और पशुओं से सीता का पता पूछना, भ्रान्त होकर रोना और बारंबार उनकी खोज करना  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  3.60.6 
 
 
रुदन्तमिव वृक्षैश्च ग्लानपुष्पमृगद्विजम्।
श्रिया विहीनं विध्वस्तं संत्यक्तं वनदैवतै:॥ ६॥
 
 
अनुवाद
 
  वह स्थान वृक्षों की सरसराहट से मानो रो रहा था, फूल मुरझा गये थे और मृग और पक्षी उदास बैठे थे। उस स्थान की सारी सुंदरता नष्ट हो गई थी। पूरी कुटी सुनसान दिखाई दे रही थी। जंगल के देवता भी उस स्थान को छोड़कर चले गए थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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