रघुनन्दन तीव्र गति से इधर-उधर घूमने और हाथ-पैर चलाने लगे। उन्होंने उस स्थान पर बनी हुई सभी पर्णशालाओं को चारों ओर से देखा, लेकिन उस समय उसे सीता से रहित पाया। जैसे शरद ऋतु में कमल की कली प्रलयंकारी हिम से प्रभावित होकर अपनी सुंदरता खो देती है, उसी प्रकार प्रत्येक पर्णशाला शोभामुक्त हो गई थी।