श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 60: श्रीराम का विलाप करते हुए वृक्षों और पशुओं से सीता का पता पूछना, भ्रान्त होकर रोना और बारंबार उनकी खोज करना  »  श्लोक 4-5
 
 
श्लोक  3.60.4-5 
 
 
उद‍्भ्रमन्निव वेगेन विक्षिपन् रघुनन्दन:।
तत्र तत्रोटजस्थानमभिवीक्ष्य समन्तत:॥ ४॥
ददर्श पर्णशालां च सीतया रहितां तदा।
श्रिया विरहितां ध्वस्तां हेमन्ते पद्मिनीमिव॥ ५॥
 
 
अनुवाद
 
  रघुनन्दन तीव्र गति से इधर-उधर घूमने और हाथ-पैर चलाने लगे। उन्होंने उस स्थान पर बनी हुई सभी पर्णशालाओं को चारों ओर से देखा, लेकिन उस समय उसे सीता से रहित पाया। जैसे शरद ऋतु में कमल की कली प्रलयंकारी हिम से प्रभावित होकर अपनी सुंदरता खो देती है, उसी प्रकार प्रत्येक पर्णशाला शोभामुक्त हो गई थी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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