श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 60: श्रीराम का विलाप करते हुए वृक्षों और पशुओं से सीता का पता पूछना, भ्रान्त होकर रोना और बारंबार उनकी खोज करना  »  श्लोक 31
 
 
श्लोक  3.60.31 
 
 
नूनं तच्छुभदन्तोष्ठं सुनासं शुभकुण्डलम्।
पूर्णचन्द्रनिभं ग्रस्तं मुखं निष्प्रभतां गतम्॥ ३१॥
 
 
अनुवाद
 
  निश्चय ही पूर्णचन्द्र के समान सुन्दर दाँतों, मनोहर होंठों और सुघड़ नाक से युक्त तथा रुचिर कुण्डलों से अलंकृत वह मुख, राक्षसों के ग्रास बनकर अपनी प्रभा खो बैठा होगा॥ ३१॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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