श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 60: श्रीराम का विलाप करते हुए वृक्षों और पशुओं से सीता का पता पूछना, भ्रान्त होकर रोना और बारंबार उनकी खोज करना  »  श्लोक 15-16
 
 
श्लोक  3.60.15-16 
 
 
ककुभ: ककुभोरुं तां व्यक्तं जानाति मैथिलीम्।
लतापल्लवपुष्पाढॺो भाति ह्येष वनस्पति:॥ १५॥
भ्रमरैरुपगीतश्च यथा द्रुमवरो ह्यसि।
एष व्यक्तं विजानाति तिलकस्तिलकप्रियाम्॥ १६॥
 
 
अनुवाद
 
  ककुभ: यह ककुभ अवश्य अपनी ही समान मृदु और कोमल जंघाओं वाली मिथिलेशकुमारी जानकी को जानता होगा; क्योंकि यह वनस्पति लता, पत्तियों और फूलों से सुशोभित होकर बहुत शोभा पा रहा है। ककुभ! तुम सभी वृक्षों में श्रेष्ठ हो, क्योंकि ये भ्रमर तुम्हारे पास आकर अपने गूंजने से तुम्हारा यशोगान कर रहे हैं। (तुम भी सीता का पता बताओ, अरे! यह भी कोई जवाब नहीं दे रहा है।) यह तिलक वृक्ष अवश्य सीता को जानता होगा; क्योंकि मेरी प्यारी सीता को भी तिलक से लगाव था।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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