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श्लोक 8
श्लोक
3.59.8
सा तमार्तस्वरं श्रुत्वा तव स्नेहेन मैथिली।
गच्छ गच्छेति मामाशु रुदती भयविक्लवा॥ ८॥
अनुवाद
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सुनकर उस आर्तनाद को, तुम्हारे स्नेह के कारण मैथिली भय से व्याकुल हो गई और रोते हुए मुझसे तुरंत बोलीं - "जाओ, जाओ।"
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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