वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 3: अरण्य काण्ड
»
सर्ग 59: श्रीराम और लक्ष्मण की बातचीत
»
श्लोक 4
श्लोक
3.59.4
स्फुरते नयनं सव्यं बाहुश्च हृदयं च मे।
दृष्ट्वा लक्ष्मण दूरे त्वां सीताविरहितं पथि॥ ४॥
अनुवाद
play_arrowpause
"लक्ष्मण! मेरा बायाँ नेत्र और बायाँ बाहु फड़क रहा है। सीता के बिना तुम्हें आश्रम से दूर मार्ग पर आते देख मेरा हृदय भी धड़क रहा है।"
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.