श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 59: श्रीराम और लक्ष्मण की बातचीत  »  श्लोक 26
 
 
श्लोक  3.59.26 
 
 
विकृष्य चापं परिधाय सायकं
सलीलबाणेन च ताडितो मया।
मार्गीं तनुं त्यज्य च विक्लवस्वरो
बभूव केयूरधर: स राक्षस:॥ २६॥
 
 
अनुवाद
 
  अपने धनुष को खींचकर उस तीर को संधान करके मैंने लीलापूर्वक चलाये हुए तीरों से जैसे ही उस मृग को मारा, वैसे ही वह मृग का शरीर त्यागकर बाजूबंद धारण करने वाला राक्षस बन गया। उसके स्वर में बड़ी व्याकुलता आ गई थी।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.