विकृष्य चापं परिधाय सायकं
सलीलबाणेन च ताडितो मया।
मार्गीं तनुं त्यज्य च विक्लवस्वरो
बभूव केयूरधर: स राक्षस:॥ २६॥
अनुवाद
अपने धनुष को खींचकर उस तीर को संधान करके मैंने लीलापूर्वक चलाये हुए तीरों से जैसे ही उस मृग को मारा, वैसे ही वह मृग का शरीर त्यागकर बाजूबंद धारण करने वाला राक्षस बन गया। उसके स्वर में बड़ी व्याकुलता आ गई थी।