श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 59: श्रीराम और लक्ष्मण की बातचीत  »  श्लोक 22
 
 
श्लोक  3.59.22 
 
 
जानन्नपि समर्थं मां रक्षसामपवारणे।
अनेन क्रोधवाक्येन मैथिल्या निर्गतो भवान्॥ २२॥
 
 
अनुवाद
 
  तुम जानते थे कि मैं राक्षसों से रक्षा करने में सक्षम हूं, फिर भी तुम मैथिली के क्रोधित वचनों से उत्तेजित होकर चल पड़े।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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