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श्लोक 20
श्लोक
3.59.20
एवमुक्तस्तु वैदेह्या संरब्धो रक्तलोचन:।
क्रोधात् प्रस्फुरमाणोष्ठ आश्रमादभिनिर्गत:॥ २०॥
अनुवाद
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वेदह कन्या के ऐसा कहते ही मैं गुस्से से भर गया। मेरी आँखें लाल हो गईं और क्रोध से मेरे होंठ काँपने लगे। ये अवस्था में मैं आश्रम से निकल आया।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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