श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 59: श्रीराम और लक्ष्मण की बातचीत  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  3.59.17 
 
 
भावो मयि तवात्यर्थं पाप एव निवेशित:।
विनष्टे भ्रातरि प्राप्तुं न च त्वं मामवाप्स्यसे॥ १७॥
 
 
अनुवाद
 
  ‘लक्ष्मण! तेरे मनमें मेरे लिये अत्यन्त पापपूर्ण भाव भरा है। तू अपने भाईके मरनेपर मुझे प्राप्त करना चाहता है, परंतु मुझे पा नहीं सकेगा॥ १७॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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