अलं विक्लवतां गन्तुं स्वस्था भव निरुत्सुका।
न चास्ति त्रिषु लोकेषु पुमान् यो राघवं रणे॥ १४॥
जातो वा जायमानो वा संयुगे य: पराजयेत्।
अजेयो राघवो युद्धे देवै: शक्रपुरोगमै:॥ १५॥
अनुवाद
श्रीराम ने सीता जी से वादा करते हुए कहा, "चिंता न करो, जल्द ही स्वस्थ हो जाओ और चिंताओं को त्याग दो। तीनों लोकों में ऐसा कोई पुरुष नहीं हुआ है, नहीं है और न ही होगा, जो युद्ध में मुझ श्री राघव को परास्त कर सके। संग्राम में इंद्र आदि देवता भी मुझे जीत नहीं सकते।"