श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 59: श्रीराम और लक्ष्मण की बातचीत  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  3.59.12 
 
 
किंनिमित्तं तु केनापि भ्रातुरालम्ब्य मे स्वरम्।
विस्वरं व्याहृतं वाक्यं लक्ष्मण त्राहि मामिति॥ १२॥
 
 
अनुवाद
 
  किसी दूसरे व्यक्ति ने अपने बुरे इरादे से आपके भाई के स्वर की नकल की और फिर ज़ोर से बुलाया, "लक्ष्मण! मुझे बचाओ!"
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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