श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 58: मार्ग में अनेक प्रकार की आशङ् का करते हुए लक्ष्मण सहित श्रीराम का आश्रम में आना और वहाँ सीता को न पाकर व्यथित होना  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  3.58.6 
 
 
कच्चिज्जीवति वैदेही प्राणै: प्रियतरा मम।
कच्चित् प्रव्राजनं वीर न मे मिथ्या भविष्यति॥ ६॥
 
 
अनुवाद
 
  वीर! प्राणों से भी प्रिय वैदेही सीता क्या अभी जीवित होगी? मेरा वन में आना कहीं सीता को खोने के कारण व्यर्थ तो नहीं हो जाएगा?॥ ६॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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