श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 58: मार्ग में अनेक प्रकार की आशङ् का करते हुए लक्ष्मण सहित श्रीराम का आश्रम में आना और वहाँ सीता को न पाकर व्यथित होना  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  3.58.5 
 
 
पतित्वममराणां हि पृथिव्याश्चापि लक्ष्मण।
विना तां तपनीयाभां नेच्छेयं जनकात्मजाम्॥ ५॥
 
 
अनुवाद
 
  "लक्ष्मण! सीता के बिना मैं पृथ्वी के राज्य और देवताओं के आधिपत्य को भी नहीं चाहता, क्योंकि सीता का गुण, अपूर्णता का नाश करने वाला है, जो अमरता और पृथ्वी पर विजय दिलाता है।"
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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