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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 3: अरण्य काण्ड
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सर्ग 58: मार्ग में अनेक प्रकार की आशङ् का करते हुए लक्ष्मण सहित श्रीराम का आश्रम में आना और वहाँ सीता को न पाकर व्यथित होना
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श्लोक 4
श्लोक
3.58.4
यां विना नोत्सहे वीर मुहूर्तमपि जीवितुम्।
क्व सा प्राणसहाया मे सीता सुरसुतोपमा॥ ४॥
अनुवाद
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हे वीर! जिसके बिना मैं एक पल भी जीवित नहीं रह सकता और जो मेरे जीवन की संगिनी है, वह देवकन्या के समान सुंदर सीता इस समय कहां है?
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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