श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 58: मार्ग में अनेक प्रकार की आशङ् का करते हुए लक्ष्मण सहित श्रीराम का आश्रम में आना और वहाँ सीता को न पाकर व्यथित होना  »  श्लोक 3
 
 
श्लोक  3.58.3 
 
 
राज्यभ्रष्टस्य दीनस्य दण्डकान् परिधावत:।
क्व सा दु:खसहाया मे वैदेही तनुमध्यमा॥ ३॥
 
 
अनुवाद
 
  राज्य से भ्रष्ट होकर, दीन और दरिद्र बनकर मैं दण्डकारण्य में घूम रहा हूं। इस दुख में मेरी सहायिका बनीं तनुमध्यमा (महीन कमर वाली) विदेहराज की पुत्री कहाँ हैं?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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