श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 58: मार्ग में अनेक प्रकार की आशङ् का करते हुए लक्ष्मण सहित श्रीराम का आश्रम में आना और वहाँ सीता को न पाकर व्यथित होना  »  श्लोक 20
 
 
श्लोक  3.58.20 
 
 
स्वमाश्रमं स प्रविगाह्य वीरो
विहारदेशाननुसृत्य कांश्चित्।
एतत्तदित्येव निवासभूमौ
प्रहृष्टरोमा व्यथितो बभूव॥ २०॥
 
 
अनुवाद
 
  वीर श्रीराम ने स्वयं के आश्रम में प्रवेश किया, उन्होंने वहां अपने और सीता के विहार करने वाले स्थानों को भी सुनसान पाया। विश्राम और क्रीड़ा करने वाले स्थानों को देखकर उन्हें उन स्थानों की स्मृति हो आई जहां पर क्रीड़ा की थी। उन स्मृतियों के उपजने से उनके शरीर में कंपन होने लगा और वे व्यथित होने लगे।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽरण्यकाण्डेऽष्टपञ्चाश: सर्ग: ॥ ५ ८॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अरण्यकाण्डमें अट्ठावनवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ ५ ८॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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