श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 58: मार्ग में अनेक प्रकार की आशङ् का करते हुए लक्ष्मण सहित श्रीराम का आश्रम में आना और वहाँ सीता को न पाकर व्यथित होना  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  3.58.2 
 
 
प्रस्थितं दण्डकारण्यं या मामनुजगाम ह।
क्व सा लक्ष्मण वैदेही यां हित्वा त्वमिहागत:॥ २॥
 
 
अनुवाद
 
  हे लक्ष्मण! दण्डकारण्य की यात्रा पर अयोध्या से चल पड़ने के पश्चात् मेरे पीछे-पीछे आने वाली और जिसे तुम अकेली छोड़कर यहाँ आ गये हो, वो विदेहराज की पुत्री सीता इस समय कहाँ है?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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