श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 58: मार्ग में अनेक प्रकार की आशङ् का करते हुए लक्ष्मण सहित श्रीराम का आश्रम में आना और वहाँ सीता को न पाकर व्यथित होना  »  श्लोक 19
 
 
श्लोक  3.58.19 
 
 
विगर्हमाणोऽनुजमार्तरूपं
क्षुधाश्रमेणैव पिपासया च।
विनि:श्वसन् शुष्कमुखो विषण्ण:
प्रतिश्रयं प्राप्य समीक्ष्य शून्यम्॥ १९॥
 
 
अनुवाद
 
  अपने छोटे भाई लक्ष्मण की चिंता में दुःखी श्री राम लम्बे समय से भूख-प्यास और थकान से कराहते हुए और सूखे मुंह वाले आश्रम के नजदीक आ पहुंचे। वहाँ उन्होंने लक्ष्मण को न देख अत्यंत निराश और व्याकुल हो गए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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