श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 58: मार्ग में अनेक प्रकार की आशङ् का करते हुए लक्ष्मण सहित श्रीराम का आश्रम में आना और वहाँ सीता को न पाकर व्यथित होना  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  3.58.17 
 
 
अहोऽस्मि व्यसने मग्न: सर्वथा रिपुनाशन।
किं त्विदानीं करिष्यामि शङ्के प्राप्तव्यमीदृशम्॥ १७॥
 
 
अनुवाद
 
  ‘शत्रुनाशन! मैं संकट के समुद्र में डूब गया हूँ और मुझे लग रहा है कि इससे भी ज्यादा कष्ट का अनुभव मुझे करना पड़ेगा। ऐसी स्थिति में मुझे क्या करना चाहिए?’
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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