श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 58: मार्ग में अनेक प्रकार की आशङ् का करते हुए लक्ष्मण सहित श्रीराम का आश्रम में आना और वहाँ सीता को न पाकर व्यथित होना  »  श्लोक 16
 
 
श्लोक  3.58.16 
 
 
दु:खिता: खरघातेन राक्षसा: पिशिताशना:।
तै: सीता निहता घोरैर्भविष्यति न संशय:॥ १६॥
 
 
अनुवाद
 
  ‘मांसभक्षी निशाचर मेरे हाथों खरके मारे जानेसे बहुत दु:खी थे। उन घोर राक्षसोंने सीताको मार डाला होगा, इसमें संशय नहीं है॥ १६॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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