श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 58: मार्ग में अनेक प्रकार की आशङ् का करते हुए लक्ष्मण सहित श्रीराम का आश्रम में आना और वहाँ सीता को न पाकर व्यथित होना  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  3.58.15 
 
 
सर्वथा तु कृतं कष्टं सीतामुत्सृजता वने।
प्रतिकर्तुं नृशंसानां रक्षसां दत्तमन्तरम्॥ १५॥
 
 
अनुवाद
 
  तुमने वन में सीता को अकेला छोड़कर बहुत दुखदायी काम किया है। क्रूर कर्म करने वाले राक्षसों को बदला लेने का मौका दे दिया है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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