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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 3: अरण्य काण्ड
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सर्ग 58: मार्ग में अनेक प्रकार की आशङ् का करते हुए लक्ष्मण सहित श्रीराम का आश्रम में आना और वहाँ सीता को न पाकर व्यथित होना
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श्लोक 14
श्लोक
3.58.14
श्रुतश्च मन्ये वैदेह्या स स्वर: सदृशो मम।
त्रस्तया प्रेषितस्त्वं च द्रष्टुं मां शीघ्रमागत:॥ १४॥
अनुवाद
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लगता है कि वैदेही ने भी मेरे स्वर से मिलते-जुलते उस राक्षस के स्वर को सुना और भयभीत होकर तुम्हें भेजा और तुम भी जल्दी से मुझे देखने के लिए चले आए।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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