श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 58: मार्ग में अनेक प्रकार की आशङ् का करते हुए लक्ष्मण सहित श्रीराम का आश्रम में आना और वहाँ सीता को न पाकर व्यथित होना  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  3.58.12 
 
 
सुकुमारी च बाला च नित्यं चादु:खभागिनी।
मद्वियोगेन वैदेही व्यक्तं शोचति दुर्मना:॥ १२॥
 
 
अनुवाद
 
  कमल की कोमल पंखुड़ियों के समान नारी, अबोध और निष्कपट कन्या, जिसने वनवास के पूर्व कभी दुःख नहीं देखा था, वह वैदेही आज हृदय में मेरे वियोग की पीड़ा से व्याकुल होकर शोकाकुल अवश्य हो रही होगी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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