सुकुमारी च बाला च नित्यं चादु:खभागिनी।
मद्वियोगेन वैदेही व्यक्तं शोचति दुर्मना:॥ १२॥
अनुवाद
कमल की कोमल पंखुड़ियों के समान नारी, अबोध और निष्कपट कन्या, जिसने वनवास के पूर्व कभी दुःख नहीं देखा था, वह वैदेही आज हृदय में मेरे वियोग की पीड़ा से व्याकुल होकर शोकाकुल अवश्य हो रही होगी।